Thursday 20 September 2012

सादा जीवन और उच्च विचार : लाल बहादुर शास्त्री

श्री लाल बहादुर शास्त्री जी जिन्हें आप और हम भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री के रूप में याद रखे हुए हैं, उनके व्यक्तित्व को अगर हम चन्द शब्दों में व्यक्त करें तो वे हैं- सादगी, उच्च विचार और शिष्टाचार !

लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में लाल बहादुर श्रीवास्तव के रूप में हुआ था। उनके पिता शारदा प्रसाद एक गरीब शिक्षक थे जो बाद में राजस्व कार्यालय में लिपिक बने।
अपने पिता श्री शारदा प्रसाद और अपनी माता श्रीमती रामदुलारी देवी के तीन पुत्रों में से वे दूसरे थे। शास्त्री जी की दो बहनें भी थीं। शास्त्रीजी के शैशव में ही उनके पिता का निधन हो गया।
अपनी गरीब माता पर बोझ न बनकर पैसे बचाने के लिए प्रतिदिन गंगा नदी तैर कर पार करके पाठशाला में जाने वाले अदम्य साहसी बालक थे लाल बहादुर !
उन्होंने एक राष्ट्रवादी विश्वविद्यालय काशी विद्यापीठ (वर्तमान महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ) में अध्ययन किया और स्नातकोत्तर शास्त्री (शास्त्रों का विद्वान) की उपाधि पाई।
1928 में उनका विवाह श्री गणेशप्रसाद की पुत्री ललितादेवी से हुआ और विवाह में सादगी इतनी थी कि इन्होंने दहेज के नाम पर एक चरखा और खादी का कुछ गज कपड़ा ही स्वीकार किया था। उनके छ: संतान हुई।
 शिक्षा समाप्त करने के पश्चात लाल बहदुर भारत सेवक संघ से जुड़ गये और देशसेवा का व्रत लेते हुए यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। शास्त्रीजी विशुद्ध गाँधीवादी थे जो सारा जीवन सादगी से रहे और गरीबों की सेवा में अपनी पूरी जिंदगी को समर्पित किया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी रही और उन्हें जेलों में रहना पड़ा जिसमें 1921 का असहयोग आंदोलन और 1941 का सत्याग्रह आंदोलन प्रमुख हैं।
उनके राजनैतिक दिग्दर्शकों में से श्री पुरुषोत्तमदास टंडन, पंडित गोविंदबल्लभ पंत, जवाहरलाल नेहरू इत्यादि प्रमुख हैं। 1929 में इलाहाबाद आने के बाद उन्होंने श्री टंडनजी के साथ भारत सेवक संघ के इलाहाबाद इकाई के सचिव के रूप में काम किया। यहीं उनकी नज़दीकी नेहरू से भी बढ़ी। इसके बाद से उनका राजनैतिक कद निरंतर बढ़ता गया जिसकी परिणति नेहरू मंत्रिमंडल में गृहमंत्री के तौर पर उनका शामिल होना था।

एक बार केन्द्र सरकार में रेल मन्त्रालय का कार्यभार सम्भालने के दौरान इन्होंने इस विभाग में बहुत सुधार किये लेकिन इनके कार्यकाल में दक्षिण भारत में एक रेल दुर्घटना में 144 व्यक्ति मारे गये। शास्त्री जी ने रेल मन्त्री होने के नाते इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रेल मन्त्री का पद छोड़ने में पल भर की भी देर नहीं लगाई। यह उनकी ईमानदारी का उत्कृष्ट उदाहरण था।
लाल बहादुर शास्त्री जी उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे।
उन्होंने 9 जून 1964 को प्रधानमंत्री का पद भार ग्रहण किया। शास्त्री जी का प्रधानमंत्री पद के लिए कार्यकाल राजनैतिक सरगर्मियों से भरा और तेज गतिविधियों का काल था।
जब शास्त्री जी प्रधानमन्त्री बने तो देश में अन्न की कमी थी। दूसरे देश अनाज देने के बदले में हम पर मनमानी शर्तें थोपना चाहते थे। अतः शास्त्री जी इस संकट की घड़ी में भी किसी देश के सामने नहीं झुके। उन्होंने विदेशी अनाज को ठुकरा दिया और देश के किसानों और वैज्ञानिकों को अधिक से अधिक अनाज उपजाने के लिए प्रेरित किया। अन्न की कमी से निपटने के लिए इसके लिए उन्होंने सप्ताह में एक दिन सोमवार को एक समय का भोजन करना बन्द कर दिया। देश के करोड़ों लोगों ने भी उनका अनुसरण किया।
पाकिस्तान और चीन भारतीय सीमाओं पर नजरें गड़ाए खड़े थे तो वहीं देश के सामने कई आर्थिक समस्याएं भी थीं लेकिन शास्त्री जी ने हर समस्या को बेहद सरल तरीके से हल किया।
किसानों को अन्नदाता मानने वाले और देश के सीमा प्रहरियों के प्रति उनके अपार प्रेम ने हर समस्या का हल निकाल दिया। “जय जवान, जय किसान” के साथ उन्होंने देश को आगे बढ़ाया।
1965 में पाकिस्तानी हुकूमत ने कश्मीर घाटी को भारत से छीनने की योजना बनाई थी लेकिन शास्त्री जी ने दूरदर्शिता दिखाते हुए पंजाब के रास्ते लाहौर में सेंध लगा पाकिस्तान को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इस हरकत से पाकिस्तान की विश्व स्तर पर बहुत निंदा हुई। पाक हुक्मरान ने अपनी इज्जत बचाने के लिए तत्कालीन सोवियत संघ से संपर्क साधा जिसके आमंत्रण पर शास्त्री जी 1966 में पाकिस्तान के साथ शांति समझौता करने के लिए ताशकंद गए। इस समझौते के तहत भारत पाकिस्तान के वे सभी हिस्से लौटाने पर सहमत हो गया जहाँ भारतीय फौज ने विजय के रूप में तिरंगा झण्डा गाड़ दिया था।
इस समझौते के बाद दिल का दौरा पड़ने से 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में ही शास्त्री जी का निधन हो गया। हालांकि उनकी मृत्यु को लेकर आज तक कोई आधिकारिक रिपोर्ट सामने नहीं लाई गई है, उनके परिजन समय-समय पर उनकी मौत पर सवाल उठाते रहे हैं। यह देश के लिए एक शर्म का विषय है कि उसके इतने काबिल नेता की मौत का कारण आज तक साफ नहीं हो पाया है।
हालांकि शास्त्री जी की देश और देशवासियों के प्रति सेवा किसी पुरस्कार की मोहताज नहीं फ़िर भी 1966 में उन्हें भारत का पहला मरणोपरांत भारत रत्न का पुरस्कार मिला था जो इस बात को साबित करता है कि शास्त्री जी की सेवा अमूल्य है।
आज राजनीति में जहां हर तरफ भ्रष्टाचार का बोलबाला है वहीं शास्त्री जी एक ऐसे उदाहरण थे जो बेहद सादगी पसंद और ईमानदार व्यक्तित्व के स्वामी थे।
शास्त्रीजी को उनकी सादगी, देशभक्ति और इमानदारी के लिये पूरा भारत श्रद्धापूर्वक याद करता है।