Monday 20 August 2012

अम्बाला में मेला वामन द्वादशी उत्सव

भगवान विष्णु के चौबीस अवतार बताए जाते हैं जिनमें दस मुख्य अवतार निम्न हैं-
मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार, नरसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, राम अवतार, कृष्णावतार, बुद्धावतार, कल्कि अवतार (अन्तिम कल्कि अवतार में विष्णुजी भविष्य में कलियुग के अंत में अवतार लेंगे।)
वामन अवतार : इसमें विष्णु जी वामन (बौने) के रूप में प्रकट हुए। हिरण्यकश्यप के प्रपोत्र व भक्त प्रह्लाद के पौत्र, असुरराज राज बलि से देवतओं की रक्षा के लिए भगवान ने वामन अवतार धारण किया।
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी को वामन द्वादशी या वामन जयंती मनाई जाती है। श्रीमद्भागवत के अनुसार इसी तिथि को श्रवण नक्षत्र में अभिजित मुहूर्त में भगवान वामन का प्राकट्य हुआ था। इस बार वामन द्वादशी 27 सितंबर, 2012 बृहस्पतिवार को है।
सत्ययुग में प्रह्लाद के पौत्र दैत्यराज बलि ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया। सभी देवता इस विपत्ति से बचने के लिए भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने कहा कि मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होकर तुम्हें स्वर्ग का राज्य वापिस दिलाऊँगा।  कुछ समय पश्चात भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया। एक बार जब बलि महान यज्ञ कर रहा थे तब भगवान वामन बलि के यज्ञस्थल पर गए और राजा बलि से भिक्षा में तीन पग धरती दान में मांगी।
राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ गए और उन्होंने बलि को दान देने से मना किया लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले लिया। भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया।
जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने अपने संकल्प को पूरा करने के लिए भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा। बलि के सिर पर पग रखने से वह पाताललोक पहुँच गए।
बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उन्हें पाताललोक का स्वामी भी बना दिया। इस तरह भगवान वामन ने देवताओं की सहायता कर उन्हें स्वर्ग पुन: लौटाया।
अम्बाला शहर में वामन द्वादशी का उत्सव तीन दिवसीय मेले के रूप में मनाया जाता है। सनातन धर्म सभा द्वारा आयोजित यह मेला इस वर्ष यह उत्सव 25, 26 और 27 सितम्बर को मनाया जाएगा।
पुरानी अनाज मण्डी के खुले मैदान में एक विशाल मण्डप सजाया जाता है जहाँ भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को यज्ञ-पश्चात नगर के विभिन्न मन्दिरों से भगवान की पालकियों को शोभा यात्रा के रूप में लाया जाता है और मण्डप में सुशोभित किया जाता है। पूरे क्षेत्र को रंगबिरंगी रोशनियों से सजाया जाता है। भगवान के दर्शन हेतु दूर-दूर से जन सैलाब इस मेले में भाग लेने के लिए उमड़ पड़ता है। एकादशी की संध्या में रंगारंग कार्यक्रम व आतिशबाजी का सुन्दर प्रदर्शन होता है।
द्वादशी के दिन दोपहर को एक विशाल शोभा यात्रा निकाली जाती है जिसमें विभिन्न बैण्ड बाजों के साथ अति सुन्दर झांकियाँ होती है। इस शोभा यात्रा के साथ भगवान की पालकियों को नौरंग राय सरोवर पर ले जाकर एक विशाल बेड़े पर ताल में तैराया जाता है फ़िर बैण्ड बाजे के साथ सभी पालकियाँ मंदिरों में वापिस ले जाई जाती हैं।
इसी के साथ यह तीन दिन का मेला समाप्त होता है।

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